हसीन ग़ज़ल
हसीन ग़ज़ल
मुरझाया हर चमन मिला आज़म
प्यार का फूल कब खिला आज़म
वो सदा ख़ुश रहे जहां भी हो
रोज़ दिल से करें दुआ आज़म
दोस्ती करने को न दिल करता
अब न दिल में मिले वफ़ा आज़म
बात ऐसी कि आज अपनों ने
खूब ही दिल मेरा दुखा आज़म
कर रहा है वहीं गिले शिकवे
कब गले से वहीं लगा आज़म
फूल उसको नहीं दिया है यूं
वो नहीं दिल से बावफ़ा आज़म
वो लगाकर इल्ज़ाम झूठे ही
वो निगाहें नम कर गया आज़म
मुफलिसी ने घेरा मुझे ऐसा
रोज़ अश्कों को सिलसिला आज़म।