चिंताहरण मोक्षवरण हरिधुन सर्व संताप हरे।
सरयू पखारे हरि चरण राम नाम का जाप करे।
राम नाम गर जपते हो भय क्यों फिर भयभीत करे।
तारणहार की महिमा न्यारी भवसागर के पार तरे।
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उर में रघुनाथ की ज्योति चित्त रघुनाथ जपे।
संस्कारित हो जीवन जब त्याग के भावों से तपे।
शांतमूर्ति अप्रमेय मानवता का पर्याय बने।
श्री राम का राम नाम रोम-रोम मेरे छपे।
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दान की महिमा के सागर में कोटि-कोटि जाप जपे।
राम नाम से ध्वनित है जब क्यों कर फिर यहां खपे।
सद्गुणों की नाव पकड़कर भवसागर से शीघ्र तरे।
राम के आभामंडल में जो कांति की आभा में तपे।
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