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Bhavna Thaker

Abstract

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Bhavna Thaker

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होंठ रसीले

होंठ रसीले

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अनार रस टपकाते रसीले 

नवयौवना के नाजुक लब

लिपटी दो कलियाँ गुलाब की 

हो आपस में जैसे।


भँवरे के चुम्बन के प्यासे

कुँवारे से लबों पर 

शबनम सी नमी है ठहरी  

पत्तियों पर मानों ओस की बूँदें।

 

जाम भर दिये हाला नें 

अंगूरी रस के प्याले 

छलक रहा है नशा नशीला 

सुराही से लबों से

दो दांत दबाते लब से।

 

हया की लाली छलके

चूम न ले कोई नींद में भँवरा 

लाली से कैद ये कर ले 

छल्ला बनाती होंठ घुमाती।


बनठन के ये निकले

हाये मत पूछ कितने सारे

कुँवारों के दिल पिघले।


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