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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

Inspirational

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बिमल तिवारी "आत्मबोध"

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होलिका दहन

होलिका दहन

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हर साल मुझको जलाने का अर्थ क्या हुआ ?

सोच से अपने मेरे जैसे सामर्थ सा हुआ

हाथ में मशाल वालों से पूछती है होलिका

जलाने का प्रयास मुझकों तेरा ब्यर्थ क्यों हुआ ?


अपनें शान के अग्नि में ख़ुद ही मैं जल गई

अभिमान के तेज़ ताप में ख़ुद ही मैं तल गई

देखती हूँ तुम सभी भरे हो उसी दम्भ में

इसलिए तेरे हाथों हर बार जलने से मैं रह गई


प्रह्लाद जैसा बन के कोई गोंद में आ जाओ मेरे

प्यार की बयार से जलाओ और बुझाओ मुझे

गर्व दर्प हिंसा नफ़रत निकाल दे जो मन से तो

ऐसे कोई अग्नि में एक बार ही जलाओ मुझे


फ़िर देखना हर साल मुझें जलाने की जरूरत नहीं

पाक दिल इन्सान में रहने की कोई हसरत नहीं

बुराईयाँ सब मिट जाए ,ऐ इंसान गर तुझसे 

तो धरती पर रुकने की मेरी कोई चाहत नहीं ।।


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