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अमित प्रेमशंकर

Abstract

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अमित प्रेमशंकर

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हनुमत अबतक क्यूं ना आए

हनुमत अबतक क्यूं ना आए

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हाय हाय रे विधना तूने

कैसे दिन दिखलाए

उगता जाता सूरज

हनुमत अब तक क्यूं ना आए।


बांध धैर्य का टुटता जाता

छुटता जाता नाता

कैसी विपदा आन पड़ी है

कुछ भी समझ ना आता


ऐसा लगता है जैसे अब

अनहोनी हो जाए...

उगता जाता सूरज

हनुमत अब तक क्यूं ना आए।


क्या उत्तर दुंगा उर्मिल को

कैसे नज़र मिलाऊंगा

बन के हत्यारा भाई का

कैसे मुंह दिखाऊंगा


रघुकुल का उजियारा दीप

ना अस्त कहीं हो जाए

उगता जाता सूरज

हनुमत अब तक क्यूं ना आए।


उठ जा मेरे लखन दुलारे

अब ना मुझे रूला रे

भैया भैया कहकर मुझको

एक बेर गले लगा रे


तेरे बिन मेरे भैया अब तो

एक पल जिया ना जाए

उगता जाता सूरज

हनुमत अब तक क्यूं ना आए।


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