हँसते जख्म
हँसते जख्म
प्यार का कहर बिखेरता ऐसा जहर
रिसते हैं हँसते जख्म ठहर - ठहर
उल्फत ना सही नफरत ही करो
करो जो भी मगर हरवक्त करो
नफरत तो उल्फत का पैगाम होता है
प्रेम में ही नयनों का घमासान होता है
प्यार सरिता में हिचकोले खाता जीवननाव
बचाकर खेना , खोने ना पाए पुराने भाव
आँखों की मदिरा यों ही छलकाती रहो
जमाना रोके गर तो यादों में ही आती रहो
काँटो का क्या फूलों ने दिया है चुभन
गैरों नही अपनो के दर्द से तड़पता मन
गम का शिकवा नही जब मन भौंरा हो
वो डूबता नही जो कभी भी तैरा हो ।।