हमें तो अपनों ने लूटा है
हमें तो अपनों ने लूटा है
गैरों की औकात ही क्या थी ? अपने साथ रहते तो बात ही क्या थी !
बात कुछ ऐसी जो कहने को बचा ही नहीं!
बिन कथानक कहानी जचा ही नहीं!
सत्य के राह पे चलना चाहा जब मैंने तो न जाने कितने झूठों ने हमसे रूठा है!
हमें तो अपनों ने लुटा है।हमें तो अपनों ने ही लुटा है!
वो कहते थे कि हर कदम पर तुम्हारा साथ निभायेंगे।
तुम्हरी तकलीफों को अपना हम बनाएंगें।
तुम्हारी खातिर अपनी जान को भी दाँव पे लगाएंगें।
पर अफसोस! मुसीबत अभी आयी भी नहीं कि वो चलते बने!
चंपत हो गये कुछ इस तरह मानों कि वो नायाब हों!
हमें बताना तक उन्होंने मुनासिब नहीं समझा!
मेरी उम्मीदों, आशाओं को बीच मझधार में ले जाकर डूबा है!
हमें तो अपनों ही लुटा है! हमें तो अपनों ने लुटा है।
पछतावा करना छोड़ दिया मैंने !
मोहताज रहना छोड़कर मैंने अब खुद का रास्ता चुना है।
जिंदगी में नई उम्मीदों का पौधा रोप तो दिया मैंने मगर फल की चिंता ने हमें बहुत कोटा है!
हमें तो अपनों ने लूटा है! हम सच में हमें अपनों ने ही लूटा है।
