हमारे ईश्वर !
हमारे ईश्वर !
निर्धन जावें न्याय मांगने, किस मंदिर की ओर
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।
मठ मंदिर के भीतर वैभव, बाहर पड़े भिखारी,
पत्थर के सब देव हमारे, पत्थर सदृश कठोर ।
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।
दर्शन करने तक में हमको, कष्ट और कठिनाई,
सहज प्रवेश उन्हींको जिनके, धन या पद में जोर ।
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।
भेंट नकद-नारायण सोना, चांदी हीरे मोती,
मनवांछित फल पाते हैं वे, बड़े-बड़े कर चोर ।
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।
सहती है अन्याय युगों से, जनता ही दुखियारी,
सुख साधन धन दौलत सारे, मंदिर रहे बटोर ।
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।
न्यायदेव ने आंख बांध ली, जग बोला समदर्शी,
आंख मूंद भगवान देखते, अंधकार घनघोर ।
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।
निर्धनता जावें न्याय मांगने, किस मंदिर की ओर ।
हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।