Dr J P Baghel

Abstract

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Dr J P Baghel

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हमारे ईश्वर !

हमारे ईश्वर !

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निर्धन जावें न्याय मांगने, किस मंदिर की ओर

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


मठ मंदिर के भीतर वैभव, बाहर पड़े भिखारी,

पत्थर के सब देव हमारे, पत्थर सदृश कठोर ।

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


दर्शन करने तक में हमको, कष्ट और कठिनाई, 

सहज प्रवेश उन्हींको जिनके, धन या पद में जोर ।

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


भेंट नकद-नारायण सोना, चांदी हीरे मोती,

मनवांछित फल पाते हैं वे, बड़े-बड़े कर चोर ।

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


सहती है अन्याय युगों से, जनता ही दुखियारी, 

सुख साधन धन दौलत सारे, मंदिर रहे बटोर ।

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


न्यायदेव ने आंख बांध ली, जग बोला समदर्शी,

आंख मूंद भगवान देखते, अंधकार घनघोर ।

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


निर्धनता जावें न्याय मांगने, किस मंदिर की ओर ।

हमारे ईश्वर रिश्वतखोर।


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