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Manoj Sharma

Abstract

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Manoj Sharma

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हम

हम

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हम! हम! हम! अक्सर... 

जीना चाहते हैं ज़िन्दगी को, 

अपनी तरह.... 


हम! हम! हम!

अक्सर... पीना चाहते हैं श़राब को,

अपनी तरह....


हम! हम! हम! अक्सर...

चलना चाहते हैं रास्तों पर,

अपनी तरह....


मगर हम! हम! हम!

अक्सर...

भूल जाते हैं

कि ये ज़िन्दगी

ये श़राब

ये रास्ते

सभी पत्थर के बने हैं....

और यूँ ही हम! हम! हम!

अक्सर...

इन पत्थरों से टकरा कर

टूटते रहते हैं

इसकी तरह

उसकी तरह

सबकी तरह... सबकी तरह!


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