हम - तुम
हम - तुम
ज़िंदगी चार दिन की है तो क्या हुआ
साथ तुम दो अगर वक्त कट जायेगा
दो क़दम हम चलें दो क़दम तुम चलो
ज़िंदगी का सफ़र यूं ही कट जायेगा
शाख पे देखो बैठे हैं बुलबुल औ गुल
साथ में गुफ्तगू हैं किए जा रहे
थोड़ा मेरी सुनो थोड़ा तुम कुछ कहो
कहते - सुनते यूं जीवन संवर जायेगा
क्या है कहता ज़माना हमे क्या ख़बर
अपनी धुन में मगन हम जिए जा रहे
राह फूलों की हो या हो कांटो भरी
वक्त जैसे भी गुज़रे गुज़र जायेगा
ग़म मिले या खुशी ये तो रब की खुशी
उसकी हर इक रज़ा में भी राजी हैं हम
भूल से भी न हो भूल हमसे कोई
खुद - ब - खुद अपना परचम फहर जाएगा।