हम सब एक है
हम सब एक है
सामाजिक प्राणी है हम सब,
हमसे ही निर्मित हो समाज।
सौहार्द प्रेम समता अपनापन,
नष्ट हुआ लगता है आज।।
जाति धर्म निर्धन अमीर दल,
बने हुए अब तो दलदल।
सब लगे पूर्ति मे निज हित की,
हत्या फरेब धन दे छल वल।।
सुख से रह स्वयं बांटिए सुख,
सब गैर नही अपने ही है।
स्वारथ के बनो न अंधभक्त,
इसमे दुर्गुण ही दुर्गुण है।।
भिन्नता व्याप्त होने पर भी,
हम भारत की सन्तान सभी।
सब भारतीय है बन्धु बहन,
मन मे रखिए यह भाव सभी।।
सबको समान अधिकार मिले,
हो न्याय न होबे भेदभाव।
तब ही होगा समाज उन्नत,
सुखमय जीवन की चले नाव।।