हम नहीं कातर
हम नहीं कातर
गली-गली में मानो अब तो रावणों का बसेरा है,
किस पर करें विश्वास, जाने कौन अस्मत का लुटेरा है !
न उम्र की सीमा है , न रिश्ते की मर्यादा देखी,
बेटी, बहन, माँ, भाभी, स्त्री हर रूप में तो लूटी।
तुमने तो स्त्री बस देह भर ही देखी,
अमीर हो या के ग़रीब, देखा न रूप, न धर्म
तुम्हें कब नज़र आया लुटती सीता का मर्म।
लम्पट, वहशी, अस्मत का लुटेरा घूमता है निर्द्वन्द्व,
क्यों दे सीता अग्निपरीक्षा, अपना सर्वस्व लुटा कर,
अब तुमको अग्निपरीक्षा, न न करना होगा अग्निस्नान।
आज नहीं सीता बेचारी, जीती सर उठा कर,
वहशी पुरुषों तुम दो अग्निपरीक्षा, हम नहीं कातर।
