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Nilesh Premyogi

Tragedy

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Nilesh Premyogi

Tragedy

हम किसान हैं

हम किसान हैं

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हम दिनभर अपना पसीना बहाते हैं

एक बीज को अनाज बनाते हैं

अकेले नहीं,सबको खिलाते हैं

अपना पेट काटकर सबको खिलाते हैं

और कोई काम करने को मन नहीं मानता

हम सिर्फ अनाज उगाते हैं

एक दाने अन्न केलिए 

हम कई रात खुदको जगाते हैं

सिर्फ सूरज की गर्मी नहीं

ठंड के ओस को भी सहजाते हैं

हम अपना पेट काटकर भी सबको खिलाते हैं

हम किसान हैं जनाब,हर रोज खुदको मरता पाते हैं।


किसी से हमे कोई बैर नहीं

किसी का हमसे कोई खास रिश्ता नहीं

फिर भी सबको अपना मानते हैं

पर कुछ लोग हमे नीच मानते हैं

हमे गरीब,दलित,कीचड़ मानते हैं

हमे हमेशा नीचा गीराते हैं

फिर भी हम कुछ नहीं कहते

सबको अन्न एक समान देते हैं

हम किसान हैं जनाब,हम मिट्टी को मां समझते हैं।


कुछ लोग हमसे हमारी जमीन छिनते हैं

हमको धुल समझते हैं

हमे जबरदस्ती मरने पर मजबूर करते हैं

हमारा कत्ल हम नहीं,वह करते हैं

सबके सामने खुदको अच्छा बताते हैं

और हमे अपना असली चेहरा दिखाते हैं

हम पे जुर्म करते हैं और हम चुप रह जाते हैं

क्योंकि वह हमारे परिवार को मारने की धमकी देकर धमकाते हैं

इसलिए हम चुप रह जाते हैं।

क्या बताएं अपना हाल 

हम तो खुद हैं बेहाल

हम तो खुद हैं बर्बाद

फिर भी सबको देते हैं अनाज

इस तरह से होगया हैं हामारा हाल आज

खुद नहीं भर पाते अपना पेट हम आज।


हम ऐसा ही करते जाएंगे

खुद भुखे रहकर 

सबको खिलाएंगे

चाहे हमारे साथ 

कोई कुछ भी करे

हम अपना धर्म निभाएंगे

हम किसान हैं जनाब

अपना पेट काटकर

सबको खिलाएंगे।



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