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Nilesh Premyogi

Inspirational

4  

Nilesh Premyogi

Inspirational

"मां"

"मां"

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मैंने हर कहानी पढ़ डाली 

पर मैंने कुछ ना पाया

मैं खाली हाथ ही आया।

मैंने देखा 'प्रेम' हजारों तरह का

पर "मां" जैसा 'प्रेम' कही पाया नहीं

"मां" जैसी करूणा, ममतामई छवि 

शायद इश्वर ने कही भी बनाईं नहीं।


"मां" तू कैसे ऐसा कर जाती है,कैसे सब सह जाती है 

रोती है तू खुद छुप-छुपकर हमे हंसकर चेहरा दिखाती है 

क्या बयां करु "मां" अब तो कलम भी रूक जाती है

कैसे तू सब दर्द अपने सीने में ही छुपाकर रह जाती है?


क्या बयां करु "मां" अब तो कलम भी रूक जाती है

कैसे तू सब दर्द अपने सीने में ही छुपाकर रह जाती है?


"मां" तू खुद रोटी रोज बनाती है 

तू ही तो सबको रोज खिलाती है

मैं सोचकर थक जाता हूं "मां"

एक निवाला खाकर! कैसे तू भूखी सों जाती है?


मैंने हर किताब पढ़ डाली "मां"

पर तुझ जैसा ना कुछ पाया

शायद इश्वर ने तुझे ही 'प्रेम' है बनाया

तुझसे ही 'प्रेम' का सही मतलब है समझाया।


शायद इश्वर ने तुझे ही 'प्रेम' है बनाया

तुझसे ही 'प्रेम' का सही मतलब है समझाया।

                        


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