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Dr. Vijay laxmi

Abstract Romance

4.5  

Dr. Vijay laxmi

Abstract Romance

हम दोनों जुदा-जुदा

हम दोनों जुदा-जुदा

1 min
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हम दोनों हैं जुदा-जुदा ,फिर भी एक अंजाना बंधन।

मैं जीवननद की माटी प्रिये, तुम मेरी सांसों का स्पन्दन। (धड़कन)


जिस से सुरभित हो तन-मन, बन जाता है नन्दन वन।

प्रेम समर्पित बगिया में भी, कभी-कभी आ जाता स्कन्दन।(जमाव)


सोच विचारों में हम दोनों पूरब पश्चिम से लगते हैं ।

पर जीवन लक्ष्य को पाने में, पथिक एक राह के हो जाते हैं 


मानो एक स्नेहासिक्त बाती, बुझते दिये को रोशन कर जाती है ।

कभी तुम होते गरम, तो मैं बहरी बन जाती ।


कभी भड़कती मैं ,तो तुम जल फुहार बरसाते ।

शोला शबनम सा यह रिश्ता चलता जाता है आहिस्ता आहिस्ता ।


लड़ते-भिड़ते, हंसते- रोते ,इस जीवन गीत को गाते ।

एक दिन ऐसा भी आएगा परिंदे (बच्चे) नीड़ में अपने उड़ जाएंगे ।


एक बार फिर से हम दोनों, एक दूजे का हाथ थामने को रह जाएंगे ।

हम दोनों हैं जुदा- जुदा फिर भी एक अंजाना बंधन। 

 

 धन्यवाद

          



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