हम भी मजबूर बड़े हैं
हम भी मजबूर बड़े हैं
हम दरिया के दो किनारे
मिल कर भी दूर खड़े हैं
कुछ परेशानियां हैं उनकी
हम भी मजबूर बड़े हैं।
यूँ मिलते तो हैं रोजाना
होता है हाल एक दूजे को सुनना
फिर भी कुछ लफ्ज़ हैं ऐसे
ज़ुबा पे आके अड़े हैं
कुछ परेशानियां हैं उनकी
हम भी मजबूर बड़े हैं।
रातों को ख्वाबों में
बिन पुछे आना जाना
खुद गिनना तारे और गिनवाना
यूँ किस्से तो और बड़े हैं
फिर भी अरमान दिल के
एक कोने में पड़े हैं
कुछ परेशानियां हैं उनकी
हम भी मजबूर बड़े हैं।
आता तो है हम दोनों को
इश्क़ छुपाना
उसका आँखें दिखा के डराना
मेरा जोर से उस पे चिल्लाना
फिर भी दबा के मुहब्बत सीने में
आज हम दोनों खूब लड़े हैं
कुछ परेशानियां हैं उनकी
हम भी मजबूर बड़े हैं।