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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Inspirational

हम बांटें आनंद

हम बांटें आनंद

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निज संस्कृति से हम प्रेम करें,

संस्कारित रह हम बांटें आनंद।

हमें आदिकाल से यही रहे बताते,

सारे के ही सारे मुनिवरवृंद।


निज मूलों के द्वारा ज्यों,

एक वृक्ष जुड़ा रहता है।

शीत घाम पतझड़ आते-जाते हैं,

मगर वह हरा- भरा रहता है।

प्रकृति का कण-कण बंधा नियम से,

नहीं कोई भी है स्वच्छंद।


निज संस्कृति से हम प्रेम करें,

संस्कारित रह हम बांटें आनंद।

हमें आदिकाल से यही रहे बताते,

सारे के ही सारे मुनिवरवृंद।


प्रकृति सुव्यवस्थित स्व अनुशासित,

हर क्षण गति में और परिवर्तित होती रहती है।

जो समय की गति ही न पहचान सके,

जीवन में उस व्यक्ति की दुर्गति होती है ।

हर पल रहते हुए गतिशील लें बदले हुए पलों का पूरा आनंद।


निज संस्कृति से हम प्रेम करें,

संस्कारित रह हम बांटें आनंद।

हमें आदिकाल से यही रहे बताते,

सारे के ही सारे मुनिवरवृंद।


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