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Indu Jhunjhunwala

Abstract

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Indu Jhunjhunwala

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हल नहीं आता

हल नहीं आता

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बहुत सह चुके,और सहा नहीं जाता,

अब भी तेरे बिन रहना नहीं आता।


क्या करे, जाँए कहाँ,कोई मंजिल ही नहीं,

इन आँसूओ का यूँ बहना नहीं भाता।


सालो की तपस्या, क्यूँ व्यर्थ पल में हुई

हुई कैसी खता, दिल समझ नहीं पाता।


पलभर में बरसों के गहरे रिश्ते क्यूँ टूटे

मन का एक ये मलाल, मिट नहीं जाता।


कुछ तो बता, राह दिखा मुझको, मेरे मौला,

जिन्दगी का है सवाल, हल नहीं आता।


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