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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

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हकीकत

हकीकत

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बिन धागा सुई सिर्फ छेद करती है ।

धागा हो तो कपड़े को वस्त्र करती है ।


सपने जब साथ चलते हैं।

रोज नई हकीकत बुनते हैं।

जाने अनजाने दर्पण बनते हैं।


जब बात फ़िक्र की हो

तो जिक्र जरूरी है।

उलझन का सुलझना

जरूरी है।


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