हकीकत
हकीकत
बिन धागा सुई सिर्फ छेद करती है ।
धागा हो तो कपड़े को वस्त्र करती है ।
सपने जब साथ चलते हैं।
रोज नई हकीकत बुनते हैं।
जाने अनजाने दर्पण बनते हैं।
जब बात फ़िक्र की हो
तो जिक्र जरूरी है।
उलझन का सुलझना
जरूरी है।
बिन धागा सुई सिर्फ छेद करती है ।
धागा हो तो कपड़े को वस्त्र करती है ।
सपने जब साथ चलते हैं।
रोज नई हकीकत बुनते हैं।
जाने अनजाने दर्पण बनते हैं।
जब बात फ़िक्र की हो
तो जिक्र जरूरी है।
उलझन का सुलझना
जरूरी है।