हितकारी योग
हितकारी योग
राजयोग मानव हितकारी, कर लो नित यह अति गुणकारी।
पद आठ हैं शास्त्र बताए, पतंजलि ने जगत फैलाए।
आभ्यंतर इंद्रिय का संयम, अंग योग कहलाता है #यम।
सदाचार पोषक शुभ संयम, #नियम नाम से जानें नित हम।।
#आसन विविध कहे गुरु शिक्षा, प्रयोग पूर्व लो तुम दीक्षा।
पूरक कुंभक रेचक जिसमें, रहे श्वास नियंत्रित उसमें।
चौथा #प्राणायाम कहाता, हृदय व तन की आयु बढाता।
इंद्रियाँ विषयों से हटतीं, मन अधीन होकर वे रहतीं।।
पंचम #प्रत्याहार कहाता, योगी यूथ परम सुख पाता।
#धारणा निज ईष्ट को धारे, चंचलता नित इससे हारे।
विषय अंश सह पूर्ण सिखावे, अंग योग वह #ध्यान कहावे।
चेतना ध्येय वस्तु की रहती, वस्तु लीन मन में नित रहती।।
निरोध चित्त वृत्ति हो जाता, #समाधि योग अंग कहलाता।
दैहिक दैविक भौतिक तापा, तीनों रहे विश्व में व्यापा।
योग कर ताप त्रय हटाओ, असीम सुख धरणी पर पाओ।
योग की महिमा बड़ी भारी, सब के लिए योग गुणकारी।।
