"हिंदी: मेरी आत्मा की वीणा"
"हिंदी: मेरी आत्मा की वीणा"
हिंदी, तुम हो मेरे अंतर्मन की वीणा,
जिसकी झंकार में बसी है मेरी आत्मा की तान,
तुम्हारे स्वर मेरे हृदय की धड़कन से मिलते हैं,
तुम हो वो संगीत, जो मुझमें सजीवता भरते हैं।
तुमसे ही खुला है मेरा हर विचार,
तुम्हारी हर धारा में बहा है ज्ञान अपार,
तुमसे जुड़े हैं मेरे सपने, मेरी कहानियाँ,
तुम हो वो गाथा, जिसने मुझे दी पहचान।
जब भी मैं शब्दों में उलझी, तुमने सुलझाया,
तुम्हारी सरलता में मैंने अपना उत्तर पाया,
तुम वो सजीव भाषा हो, जो ख़ामोशी को भी आवाज़ देती है,
तुम्हारी ममता में छुपी है हर एक सजीव प्रार्थना।
तुम हो मेरे दादाजी का स्पर्श,
उनकी कहानियों में बसी वो पुरानी महक,
तुम हो माँ की वो आँचल की छांव,
जिसने हर कदम पर मुझे स्नेह दिया और थाम लिया।
तुम वो भाषा हो, जो मेरी ख़ुशियों में गुनगुनाती है,
तुम्हारे शब्दों में बसा है मेरे दिल का हर गीत,
तुम हो वो प्यारी दोस्त, जो ख़ुशियों में हँसाती है,
और दर्द के लम्हों में सजीव दुआ बन जाती है।
जब जीवन के चौराहे पर मैं रुकी,
तुमने राह दिखाई और मंज़िल सुझाई,
तुम्हारे अक्षरों में बसा है वो जादू,
जिसने हर मुश्किल को सरलता में बदल दिया।
तुमसे ही सीखा मैंने सम्मान का हर अर्थ,
तुमसे ही समझा रिश्तों का हर महत्व,
तुम हो वो अमृत, जिसने मेरी आत्मा को सींचा,
तुम्हारे बिना ये जीवन कितना सूना और बिन रीढ़ का।
तुम वो भाषा हो, जिसमें मेरी संवेदनाएँ सांस लेती हैं,
तुम्हारे बिना हर अहसास अधूरा है,
तुम हो वो दर्पण, जिसमें मैं खुद को देखती हूँ,
तुमसे जुड़ा हर क्षण मुझे फिर से जीवन देता है।
हिंदी, तुम हो मेरे दिल की सबसे गहरी अनुभूति,
तुम्हारी ध्वनि में बसी है मेरी आत्मा की शक्ति,
तुमसे ही मैं परिपूर्ण हूँ, तुमसे ही मैं अमर हूँ,
तुम मेरे वजूद का वो हिस्सा हो, जो कभी मुझसे अलग नहीं।
