हीरो कोन?!!
हीरो कोन?!!
मैं जानता हूं कुछ हीरो को...
जिनकी पक्की थी, लड़ने से पहले ही हार
पर दम नहीं तोड़ा उन्होंने,
ना झुकने दी अपनी आस ...
रुक रुक कर चलाए क़दम,
ना लिया किसी का साथ...
झूठी कहानियां बुन के,
गिराना चाहा कई बार...
पल पल रोया, खुद को संजोया,
पर नहीं किया कभी आवाज़...
हर पल रोया, जीवन का दरवाजा तोड़ा,
खुद ही लाया खुद को इस पार...
लड़ाई सच्चाई की है या झूठ के काबिलीयत की,
मैं समझ नहीं पाया कई बार...
शिकायत की लड़ाई भी, पर कुछ न हुआ हासिल इस बार,
क्या यही कहानी बनाई है जिसमें हारेगा हीरो ही बार बार...
ठुकरा रहा हूँ मैं ऐसी फिल्म, जिसमें किरदार के जमीर है कंगाल,
संजोऊंगा मैं अपनी काबिलीयत से, अपना ही आशियाँ,
जहां ना होगा कोई फर्जी, ना दुष्ट पापी लाचार
