हिचकी का इशारा भी नहीं आता
हिचकी का इशारा भी नहीं आता
ठहर गया है वक़्त कुछ नजर नहीं आता
कैसी है दुश्वारी, कुछ समझ क्यूँ नहीं आता
ऐसे लगता है मानो सदियाँ बीत सी गई हैं
उसके आने की कुछ खबर क्यूँ नहीं आता
सूनी पड़ी सड़क हर जगह वीरानी छायी है
उस सड़क से कोई राहगीर क्यूँ नहीं आता
हसरतें भी अब हो चली हैं मायूस, क्या कहें
शीतल हवा का कोई झोंका, क्यूँ नहीं आता
बड़ी मुश्किल से सम्भाल रखा था खुद को
अब तो कोई किनारा भी नजर नहीं आता
बेचैनियाँ मेरी पहुँच गई तुम तक कैसे मान लूँ
अब तो कोई हिचकी का भी इशारा नहीं आता
बैठा हूँ रखकर हाथ पर हाथ कब से निराला
तरस गई आँखें उसका मेसेज क्यूँ नहीं आता।

