माटी का सौदा कभी किया नहीं
माटी का सौदा कभी किया नहीं
गुमाँ खुद पर हमने कभी किया नहीं
अपनी माटी का सौदा कभी किया नहीं
बांटा है हमने लोगों का हरदम दर्द
किसी को दर्द स्वप्न में भी कभी दिया नहीं
नामुराद हरकतों से कब तक बचेगा तू
दिखाता है तेवर, कहता है कुछ किया नहीं
जिम्मेदारीयों से अपने कभी पीछे हटा नहीं
अपनी पुरखों को भी रुसवा कभी किया नहीं
ये जमीन ये आसमान पर कब हुई तुम्हारी बपौती
भगवान ने इसका हक तुमको कभी दिया नहीं
दिखाता है तूँ खुद को सबका मददगार
किसी ने तुझे इसकी इजाजत दिया नहीं
टकराकर साहिल से हर लहर बिखर जाती है
मुझको आंकने का सबब तूझे दिया नहीं
एक बार आकर देख लेना मेरी हैसियत
फिर मत कहना की मौका हमने दिया नहीं
किसी के गुरूर को ऐसे ही जाने दिया नहीं
बेवजह किसी को सलाह भी दिया नहीं
अब भी वक़्त है सम्भल जा तूँ
वर्ना दुश्मनों को हमने जीवन दान दिया नहीं
तुम कहते हो ये जमीन पर हक़ तुम्हारा है
एक कतरा खून का कभी तुमने दिया नहीं
सदियों से बह रही प्यार की बयार निराला
प्यार पर अपना एकाधिकार कभी किया नहीं!
