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Kavi Yash kumar

Drama

3  

Kavi Yash kumar

Drama

हे प्रिय मित्र

हे प्रिय मित्र

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सोचा न था कि नए-नए आते ही

तुम मेरे इतने अच्छे दोस्त बन जाओगे l

पता न था कि कुछ ही दिनों में

तुम इतने छा जाओगे l


पूरे स्कूल के वक़्त तुम

हमेशा मेरे साथ रहते  थे l

भले ही मॉनिटर बन गए थे पर

मुझे कभी भी कुछ नहीं कहते थे l


जल्दी ही तुम सभी की

आंखों का तारा बन गए।

जिन्होंने ने भी तुम्हारा तमाशा बनाया

वे खुद सबकी नज़रों में तमाशा बन गए।


लंच के समय हमेशा

हम साथ मे खाना खाते थे।

चलती हुई कक्षा में भी तुम

मुझको बहुत सताते थे।


हमारे घर एक दूसरे से मीलों दूर थे

यही तो वजह थी जो हम मजबूर थे।

काश हम एक दूसरे के पड़ोसी होते

खुशहाली का जीवन होता और

हमारी दोस्ती में कोई दरार नहीं होती।


जब भी तुम नहीं आते थे तो पूरा दिन

मेरा स्कूल में बेकार जाता था।

जब पूछता था तुमसे वजह मैं तो

एक नया बहाना सुनने में आता था।


अक्सर छुट्टी के समय मुझे तुम्हारे कहने पर

और देर तक रुकना पड़ता था।

तुम्हारी छोटी छोटी शरारतों से

हमारा दोस्ताना और बढ़ता था।


तुम्हारे बिना लंच करने में तो

टिफ़िन खोलने का मन ही नहीं करता था।

तुम्हारे बिना खाना खाने में तो स्वादिष्ट पकवान भी

कड़वे करेले सा लगता था।


कोई विश्वशनीय न था

बस तुम्हारा ही साथ था।

मेरी कामयाबी के पीछे

तुम्हारा बहुत बड़ा हाथ था।


मैं कवि था और तुम चित्रकार थे

छोटी सी उम्र से ही हम बड़े कलाकार थे।

तुम्हारे कारनामों का सच में

कोई जवाब नहीं था।


तुम्हारी अच्छाइयों का

वाकई कोई हिसाब नहीं था।

मेरी पहली बेकार सी कविता पर भी

तुमने उसे गज़ब बताकर

मेरा हौसला बढ़ाया था।


तुम्हीं में मुझको कवि बनाकर

मेरे अंदर के भय के दीए को बुझाया था।

मेरी कविताओ को दुनिया के

प्रकाश में तुम्हीं लाये थे।


कविता भले ही मैंने लिखी थी

पर मेरी कला को तुम्हीं ने जगाया था।

दुनिया में तुम सा कोई है ही नहीं

तुम्हारा नाम ही नहीं तुम खुद भी अनूठे थे।


मेरी पहली कविता गज़ब की थी

बस तुम इसी बात के झूठे थे।

तुम्हारे उस झूठ से ही तो में आज

इस क़ाबिल हूँ जो यह कविता रच पाया हूँ। 


बस तुम्हारा ही तो साथ था जो मैं

उन सब से आगे बढ़ पाया हूँ।


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