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अब किसी की ऐसी फितरत नहीं होती

अब किसी की ऐसी फितरत नहीं होती

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अब किसी की ऐसी,

फितरत नहीं होती,

अपने हैं जो उनसे,

उल्फत नहीं होती ।


राह चलते जो नज़र,

रखते हैं कुटिया पर,

महलों में फिर उनके,

बरकत नहीं होती ।


शख्स मर जाते हैं,

फिर भी मगर उनकी,

शख्सियत यूँ कभी,

रुखसत नहीं होती ।


हँसते हैं फिर दूसरों पर,

यूँ अक्सर वो,

जिनकी खुद कोई भी,

इज़्ज़त नहीं होती ।


जुल्म करते हैं वो जो,

बच्चों पर अक्सर,

खुदा की उन पर,

यूँ रहमत नहीं होती ।


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