हे! कोरोना।
हे! कोरोना।
हे! कोरोना, तुम जो हो न,
बड़ी ज़ालिम हो।
अनजाने में गले लगाया,
मुफ्त में तुम हासिल हो।
स्वप्न सुंदर सा भंग किया,
कितनों को तुमने तंग किया,
ऐसी तबियत लेकर हो फिरती!
की दुनिया को दंग किया,
मानवता के भाव नहीं समझती,
लगती बिल्कुल जाहिल हो!
पूरी दुनिया में हाहाकार किया,
बेमन से सबने स्वीकार किया,
फिर भी बन गई तुम बेवफा,
कितनों का बेड़ा पार किया।
अदृश्य रहकर काम हो करती,
यह कैसी तुम मुश्किल हो?
हर लेती हो प्राण-पखेरू!
कैसे तुम पर आँख तरेरू!
ठीक नहीं इरादे तेरे,
नामुराद इन इरादों पर
कैसे पानी फेरू?
कैद हो गया लो घर में अब तो,
दूर बनाने के केवल,
तुम क़ाबिल हो।
हे! कोरोना, तुम जो हो न,
बड़ी ज़ालिम हो।
