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भाऊराव महंत

Abstract

5.0  

भाऊराव महंत

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हे ! भारती के लाल तुम

हे ! भारती के लाल तुम

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हे ! भारती के लाल तुम। 

हो काल के भी काल तुम,

हे ! भारती के लाल तुम।


झंझा निकलती व्यग्र हो, 

ज्वाला धधकती उग्र हो, 

बैरी मरे  जो अग्र हो, 

निःसृत करो असि-ढाल तुम,

हे ! भारती के लाल तुम।


जब शत्रु का आतंक हो, 

घाटी–धराधर–पंक हो,

लड़ते तुम्हीं निःशंक हो,

कर फैसला तत्काल तुम,

हे ! भारती के लाल तुम।


जब शत्रु तुमको देखते,

तब युद्ध करने झेंपते,

थर-थर-थराथर काँपते, 

जब-जब उठाते भाल तुम, हे !

भारती के लाल तुम।


हों क्रुद्ध जब दृग भींचते, 

रिपु रक्त महि को सींचते, 

मृत शत्रु के शव खींचते, 

लगते बड़े विकराल तुम, हे !

भारती के लाल तुम।


तुम वीर हो, तुम धीर हो,

तुम हिमशिखर,पामीर हो,

निज देश हित गम्भीर हो, 

रखते वतन का ख्याल तुम,

हे ! भारती के लाल तुम।


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