हौसले
हौसले
हौसले मेरे कुछ यों बढ़ चले हैं,
अम्बर से भी आगे कदम बढ़ चले हैं।
जिन मंज़िलों की चाहत मुझे है,
न हो राहें वहाँ तक तब भी परवाह नहीं है।
मेरे हौसले कुछ यों बढ़ चले हैं,
मंजिलों से भी आगे सफर चल पड़े हैं।
परवाह नहीं अब,
कि हूँ कितनी नीचे या कि मैं पीछे,
बुलंदियों को छूने का अब मन में
हम भी दम भर चले हैं।
हौसले मेरे कुछ यों बढ़ चले हैं,
कि अम्बर से भी आगे कदम बढ़ चले हैं।
जो बुलंद हूँ तो हैं बुलंदियां मेरी,
ऐसा सोचने का अब हम भी प्रण कर चले हैं।
कि अब बुलंदियों को छूने,
हम निकल पड़े हैं।
हौसले मेरे कुछ यों बढ़ चले हैं,
कि अम्बर से भी आगे कदम बढ़ चले हैं।