कुछ सवाल ज़िन्दगी के!
कुछ सवाल ज़िन्दगी के!
ये ज़िन्दगी है क्यों, ये ज़िन्दगी है क्या
यही सवाल तेरे भी ज़ेहन में है बसा
वजूद ने तेरे मेरे इसी सवाल को
भुला दिया है क्यों, भुला दिया है क्या।
तू सोचता है क्यों, तू सोचता है क्या
अहमियत ख़ुशी को ही मिलती है बस यहाँ
ये दुःख ही वजह तेरी ख़ुशी को जो
बढ़ा दिया है क्यों, बढ़ा दिया है क्या।
खुदा है चीज़ क्यों, खुदा है चीज़ क्या
तेरे लिए यहाँ मेरे लिए वहाँ
मानता अपना है वो अगर इस जहान को
डरा हुआ है क्यों, डरा हुआ है क्या।
ये आख़िरत है क्यों, ये आख़िरत है क्या
आये यहाँ हैं तो जाना है फ़िर कहाँ
जीना ही है इधर जीना भी है उधर, तो
मरना लिखा है क्यों, मरना लिखा है क्या ?