हाय यह गरीबी
हाय यह गरीबी
गरीबी की दुनिया में,मंहगाई के बिछौने पर,
लाल को कैसे सुलाऊं?
मंहगा हुआ सिलैंडर,टांड पर चढ़ा दिया,
आटा तेल पहुंच से परे।
सत्तू ही घोल कर पिला दिया,कड़छी को भगौने में,
यूं ही चला दिया।
छूट गया काम भी,घर कैसे चलाऊं,
बुलडोजर का भी, कहर कुछ कम नहीं।
तोड़ डालीं झोपड़ियां,हाथ जोड़े पर करम नहीं,
रोजगार रेहड़ी भी, तोड़ दी रहम नहीं।
बारिश में खुले में,क्या संभालुं क्या बचाऊं,
धर्म की मशाल लिए,हो रहे दंगे।
यूं तो हमाम में,सभी रहे नंगे,
तुझसे बेहतर मेरा धर्म,हम ही हैं चंगे।
उन्माद की इस अग्नि से,कैसे दामन बचाऊं,
खुद पर कर भरोसा, सबको सही राह दिखाऊं।