हाथों की लकीरें
हाथों की लकीरें


मेरे हाथों की लकीरों में
राहें हैं कुछ जुदा जुदा सी
जिनमें लिखा तो है सफ़र
पर मंज़िलें हैं कहीं गुम सी
कहते हैं, मंज़िलों और
क़िस्मत में गहरा नाता है
मंज़िलें उन्हीं को मिलतीं
जिनका क़िस्मत से याराना है
बंद मुट्ठी में क्या क़िस्मत
होती है इक क़ैद चिड़िया सी
हाथ की लकीरों के बीच
सहमती या फुदकती सी
क़िस्मत तो है बंद ताले सी
जो बस मेहनत की
चाबी से खुलती है
कोशिश की सीढ़ी ही
शिखर तक पहुँचती है
ये लकीरें कहाँ तय करती हैं
ज़िन्दगी के अहम फ़ैसले
पर जब कभी धूप छांव सी
ज़िन्दगी कर दे मन उदास
क़तरा क़तरा लगे बोझिल
बचे न मन में कोई आस
तब ये हाथों की लकीरें ही
करतीं हैं जैसे कोई चमत्कार
बता कर भविष्य भरतीं
फिर से मन में नई आस
निराशा के बादल छँट जाते
आशा का सूर्य दमकता है
नई उम्मीद नई ताक़त से
इंसान कोशिश की सीढ़ी
एक बार फिर से चढ़ता है
क़िस्मत की बुलंदी तो
तय होती है मेहनत से
हाथ की लकीरें तो बस
सदा आस जगाती हैं
ये आस है तो हम ज़िन्दा हैं
बिन आस जीना बेमानी है
मेहनत और उम्मीद हैं
दोनों इक दूजे के पूरक
और इक दूजे बिन अधूरे
जब हों दोनों साथ तभी
हमारी ज़िन्दगी सँवरती है
क़िस्मत भी तभी जीवन में
ख़ुशियों के रंग भरती है