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Sunita Shukla

Abstract Inspirational

4.4  

Sunita Shukla

Abstract Inspirational

हाँ मैं नारी हूँ

हाँ मैं नारी हूँ

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हाँ मैं नारी हूँ, 

जीवन का आधार और

बहते प्रेम की धार।


नहीं मेरी कोई अभिलाषा 

शेष नहीं अब किंचित आशा 

तम के तिमिर का वार हूँ 

और छाई घनघोर निराशा।


नहीं माँगती धन वैभव मैं 

और नहीं समानता का अधिकार 

जब स्वयं रचयिता ईश्वर ने बनाया 

मुझको मानव जीवन का आधार।


मैं धरती मैं अम्बर हूँ, मैं हवा मैं फ़िजा 

और बहते जल की धार हूँ मैं 

मैं परंपरा मैं ही प्रथा, मैं धरा मैं सर्वथा 

और नवजीवन का संचार हूँ मैं।


करुणा ममता की सरिता मैं 

कल-कल मुझको बहने दो 

अस्तित्व को न ललकारो मेरे

नारी हूँ, मुझ नारी ही रहने दो।


प्रकृति ने बनाया है मुझे कुछ विशेष <

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कभी आंसू कभी मुस्कान, नहीं कोई राग द्वेष 

स्नेहमयी, रौद्ररूपिणी, दया और करुणा 

और अनुरागी मानवता का समावेश।


कैसे कहूँ हे सभ्य और शिक्षित समाज 

मेरे कदम तुम्हारे समतल हैैं 

तुम आसमान मैं धरा निरातल 

मिले पुष्प तुम्हें और मुझे विषैले संदल।


जीवन का यह कटु सत्य अटल 

तुममें जीवित उद्वेग और मैं हूूँ संबल 

अवनि और अंबर होंगे कैसे समान 

जब तुम्हें मिला है दम्भ और

मुझे स्नेहिल आँचल।


एक कदम बढ़ा कर देखो तो 

साथ सदा ही पाओगे 

गर अब भी न समझ सके 

बस हाथ मले पछताओगे।


हाथ मले पछताओगे 

और रीते हाथोंं रह जाओगे 

धोखा ही धोखा खाओगे 

अपना सर्वस्व गंवाओगे।


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