हाल-ए-बाज़ार
हाल-ए-बाज़ार
मैं मुफ्लिस हूं जनाब, हाल-ए-बाज़ार नहीं जानता,
मुझे सूखी रोटी मंज़ूर,मैं सब्जी अच़ार नहीं जानता।
ना मैं घर पर हूं,ना मैं काम पर हूं,
मैं रास्ते मैं हूं और मैं ये रास्ता भी नहीं जानता,
सियासत चलती है वोट और नोट पर
मैं चलता हूं एक कमीज़ और लंगोट पर,
बचपन में कहीं खेला था गिल्ली-डंडा और कंची
पर यहां खेल सियासती है,
और मैं यह सियासती खेल नहीं जानता,
ईंट ईंट जोड़कर महल बनाए जिनके
आज उसी महल से सुनाई आया वो हमे नहीं जानता,
मैं मुफलिसस हूं जनाब,हाल-ए-बाज़ार नहीं जानता,
मुझे सुखी रोटी मंज़ूर,मैं सब्जी अचार नहीं जानता।