यह कविता हमें जीवन की वास्तविकता से रूबरू करती है। यह कविता हमें जीवन की वास्तविकता से रूबरू करती है।
मुझे सूखी रोटी मंज़ूर,मैं सब्जी अच़ार नहीं जानता। मुझे सूखी रोटी मंज़ूर,मैं सब्जी अच़ार नहीं जानता।
चलो आज फिर एक नया भगवान बनाते हैं, किसी के दुखी मन को, नफरत की राह दिखाते हैं, चलो आज फिर एक नया भगवान बनाते हैं, किसी के दुखी मन को, नफरत की राह दिखाते हैं...