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Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Fantasy

4  

Kunda Shamkuwar

Abstract Drama Fantasy

ह से हिरण...

ह से हिरण...

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तुम ढूँढते रहना ह से हत्या और म से मरघट वाले लफ़्ज़ों को....


मैं ढूँढकर ले आऊँगा ह से हल और म से मंदिर बनते लफ़्ज़ों को... 


तुम घोलना लफ़्ज़ों में धर्म का नशा और नफ़रत का जहर 


मैं फिर से गढ़ने लगूँगा द से दाल और र से रोटी बनाते लफ़्ज़ों को 


तुम दिखाओगे लाल रंग खून के बहते कतरों का...


मैं ले आऊँगा लाल रंग बाग़ीचे में खिलते गुलाबों से 


तुम ढूँढते रहना हरा रंग किसी कड़वे से करेले में...


मैं लेकर आऊँगा हरा रंग उस बड़े मीठे तरबूज से...


तुम करते रहना ज़िबह मेरे सारे जवाबों को...


मैं करते रहूँगा जिरह तुमसे मेरे सारे सवालों के....


सवाल अब कुलाँचे मारने लगे है....  


क्योंकि वे जान चुके है कि ह से अब हिरण भी बनता है... 



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