गुस्सा
गुस्सा


तुम क्या समझते हो
अपने गुस्से से सबको
अपने अनुसार ढाल लोगे
सबको अपने रंग में रंग लोगे?
तुम्हारे माथे के तेवर
लाल जलती आंखें
तनी हुई नसें
फड़कती मांसपेशियां
यानि इतना बिगड़ा रुप
तुम समझते हो
सारे संसार को फतह कर लोगे?
हर परिस्थिति में गुस्सा
हर मन:स्थिति में गुस्सा
मुश्किल में गुस्सा
अड़चन में गुस्सा
छोटी-छोटी बात पर गुस्सा
गमी में गुस्सा
खुशी में भी गुस्सा
गुस्सा ही गुस्सा
तुम क्या समझते हो
सब प्रश्नों के उत्तर पा लोगे?
गुस्से में तुम स्वयं जलते हो
दूसरों को भी जलाते हो
अपने होशोहवास खोते हो
दूसरों को बदहवास करते हो।
समझते क्यों नहीं
हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है
सब सह जाते हैं तुम्हें
तुम्हारी आदत को जान या
फिर तुम्हारे ऊंचे पद के कारण
तुम समझते हो
तुमने सब पर काबू पा लिया।
कभी सोचा है क्या
तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आता है।
तुम में निराशा पैदा होती है
जब कोई बात
तुम्हारे मन मुताबिक नहीं होती
यही निराशा गुस्से में
बदल जाती है।
तुम समझते हो
तुमने सब जीत लिया।
काश! तुमने गुस्से की शक्ति पहचानी होती
काश! इस शक्ति को तुमने
ठीक दिशा दी होती
इस शक्ति से तुम
कुछ भी कर सकते थे
दरियाओं के रुख बदल सकते थे आकाश को मुट्ठी में भर लेते
अंधेरे को प्रकाश में बदल देते ज़माने के एक बहुत बड़े
क्रांतिकारी बनते।
अब कुछ नहीं हो सकता
गुस्से की आग में जल जल कर
तुम एक फ़िसड्डी बन कर
रह कर गए हो।