गुरुपूर्णिमा
गुरुपूर्णिमा
कैलेंडर, महज कुछ पन्नों का था,
उड़ता रहा, फड़फड़ाता रहा,
दिन , तारीख, वर्ष,
बदल-बदल कर सामने लाता रहा.
हां, बताया उसने मुझे,
आज आषाढ़ पूर्णिमा है,
गुरुपूर्णिमा----
किसे कहती गुरु,
शायद समय ही मेरा गुरु था,
इधर वो बदल रहा था,
और इधर नित नई मैं---
तारीखों , दिन, और वर्ष की तरह,
बदलती ही जा रही थी---
वो यथार्थ के धरातल पर,
कभी खुशी कभी गम देकर,
अनुभवों की झोली में,
अनुभव सामोता जा रहा था.
हां! समय है मेरा गुरु,
न कभी खुद एक सा रहा,
न मुझे रहने दिया,
हंसाया कम, ज्यादा रुला दिया,
और परिपक्व, और भी परिपक्व,
सर्दी, गर्मी, बरसात,
सबको सहना सिखाता गया.
अब मैं एक चट्टान हूँ,
जब उस ईश्वर के सामने जाऊंगी,
आंखें जरूर मिलाऊंगी---
औ'उसे बताऊंगी,
तूने जो दिया था मुझे गुरु,
वो मुझे भी शिष्य से---
गुरु बना गया---
आभार प्रकट कर आऊंगी.