गुरु महिमा
गुरु महिमा
गुरू एक निर्झर जिससे नित ,
ज्ञान प्रेम की बहती धार ।
श्रद्धा विनय भक्ति जो करता ,
पाए आशीष ज्ञान अपार ।।
अज्ञान कपट सब कष्ट हरे ,
बन दीप सदा तम दूर करे ।
सन्मार्ग दिखाकर जीवन में ,
गुरू ही सबको भव पार करे ।।
जब जीवन नौका हो डगमग ,
पतवार गुरू बन जाता है ।
संकट से बचाकर हम सबको ,
गुरू ही दायित्व निभाता है ।।
बन कुम्भकार हर खोट सकल ,
मिट्टी से सुपात्र बनाता है ।
सद्ज्ञान धौकनी जला जला ,
कुन्दन सा मूल्य बढाता है ।।
गुरू सत्ता दिव्य है जीवन की ,
सबने ही शीष झुकाया है ।
शत कोटि नमन गुरू चरणों में,
जिन जीवन को महकाया ।।