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Neeraj pal

Abstract Inspirational

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Neeraj pal

Abstract Inspirational

गुरु दरबार।

गुरु दरबार।

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यह वह दरबार है जहां हर मज़हब के साथ बैठाए जाते हैं।

कोई किसी से भेद न करता सब गले लगाए जाते हैं।।


क्या दरबार दिया मेरे मालिक ने, कोई ऊँच-नीच का ना भाव यहां।

बिन मांगे ही सब मिल जाता है, खुशी से गले लगाते हैं।।


दीन -दुखी सब आ करके अपने दुखड़े यहां सुनाते हैं।

दीन बंधु बनकर मेरे दाता! सब के दुख हर लेते हैं।।


एक बार जो इस दरबार में आ गया, भूल कभी ना पाता है।

नशा प्रेम का इतना चढ़ता, कई बार पीने आते हैं।।


गुमशुदा वह हो जाता है, क्या दरबार की शान निराली है।

होश आने पर ऐसा लगता, अपने को ही भूल जाते हैं।।


"साधना "का तो कोई मर्म ना जाने, कुछ ना करना होता है।

आँख बंद कर सिर्फ बैठ जाते, सब कुछ "वही" कर देते हैं।।


भाग्यशाली है वह बहुत बड़ा, जो साधन -पत्रिका पढ़ता है।

बिन परिश्रम के ही सब कुछ मिलता उसको, क्लेश सब मिट जाते हैं।।


हे गुरुवर यही है आरजूू तुमसे, दरबार कभी भी छूटने ना पाये।

अंतिम समय हो जब "नीरज" का तुम को ही पाना चाहते हैं।।


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