गुंजित है मन
गुंजित है मन
यूँ तन्हा थी ये ज़िन्दगी,
और सफ़र मेरा तन्हा रहा।
चलते-चलते मिले जब से तुम,
हाल दिल का न वैसा रहा।।
हम पराये से खुद हो गये,
जब से तुम मेरे अपने हुए।
तार दिल के सभी छिड़ गये,
छू लिए राग सब अनछुए।।
सूनी-सूनी जो राहें रहीं,
अब तलक मेरे कदमों के संग।
साथ पाया है जब से तेरा,
पा लिए राहों ने सारे रंग।।
मेरी दुनिया थी सूखा सा वन,
आए लेकर हो तुम सारे मौसम।
खिल गया दिल का है कोना-कोना,
गीत लहरों से गुंजित है मन।।
सूनी-सूनी सी बेरंग थी,
मेरे जीवन की हर गली।
प्रेम का तेरे संगीत पा,
हर तराने से मैं जा मिली।।