मंगल पाण्डेय
मंगल पाण्डेय
देशभक्त, वह एक दीवाना,
आजादी का पहला परवाना।
गोरे अंग्रेजों से भिड़ा जो,
मंगल पाण्डेय नाम सुजाना।।
सन् अठारह सौ सत्तावन,
पहला स्वतंत्रता संग्राम।
फूँका जिसने बिगुल युद्ध का,
छेड़ा जिसने युद्ध अविराम।।
कारतूस में गाय की चर्बी,
मुंह से खोलना किया मना।
इसी बात से फिरे फिरंगी,
मंगल पाण्डेय बागी बना।।
अप्रैल आठ थी, सन् सत्तावन,
फाँसी की थी सजा करार।
बेरहमी से लटका फाँसी,
भारत माँ करती चीत्कार।।
नमन तुम्हें हे! क्रान्तिवीर है,
श्रद्धा सुमन समर्पित करते।
युगों-युगों तक याद रहोगे,
मस्तक तव चरणों में धरते।।
