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Anil Jaswal

Comedy

4  

Anil Jaswal

Comedy

गर्मी है कठिन जर्नी।

गर्मी है कठिन जर्नी।

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216


सर्दी हुई खत्म,

गर्मी का हुआ स्वागत,

सबसे पहले,

रजाई छुुुटी,

हल्की चादर लिपटी,

पंखे को दी ग्रीस,

रोशनदान खुलेे,

पसीने से मिली रिलीफ।


आहिस्ता आहिस्ता मछर भी आ गये,

बिजली भी जाने लगी,

रात को नींद में जगाने लगे,

उधर पसीने से लथपथ होने लगे,

शरीर सेे बदबू निकलने लगे,

पत्नी भी नजदीक आनेे से डरे,  

बार बार डियोड्रेंट होने लगा उपयोग,

कुुछ  ही दिन चल पाए बढ़ा पैक,

नोटों का होने लगा  सत्यानाश।


कैसे न कैसे  सुबह  हुुई,

लेकिन जाग देेर से  खुली,

जैैसे ही घुसे बाथरूम केे अन्दर,

नल  पानी से सुखा,

ऐसे ही निकलेे बाहर,

देेखी घड़ी,

आफिस की बस आ खड़ी,

नाश्ते से किया किनारा,

बस  में तुरंत हुुुुआ सवार,

लड़ हारकर पहुंचा,

आफिस श्रीमान।


कुछ देर तो सब रहा ठीक,

अब   हो गई आफिस  की भी  बती गुल,

उठाई पुुुरानी फाइल,

बना डाला उसका फैन,

जैैैैसे-जैसेेेे सुरज तपनेे लगा,

आफिस का तापमान बढ़ने लगा,

सबने ट्रांसफार्मर  केे आगे अगरबत्ती जलाई,

तब जाके आफिस में  बिजली आई।


आखिर आफिस को कहा  अलविदा,

थका हारा घर  पहुंचा,

घुमान था,

पत्नी मुसकुराएगी,

कम  से कम  गले  लगाएगी,

हुुुआ  विपरीत,

उसने देेखते  ही,

बुरा सा मुुंह बनाया,


 अदंर   की ओर   क़दम बढ़ाया,

अदंर जाते हुुए बोली,

नहाकर ही अंदर आइएगा,

आखिर बाथरूम  में  घुुसा,

पहला कप उपर  डाला,

बहुत जोर से चिल्लाया,

अरे  मार डाला,

गर्म पानी सेे नहा  डाला।


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