गरीब किसान की व्यथा
गरीब किसान की व्यथा
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हरियाली के बीच रांझणा, पूछ मरोड़े बैलों की।
साँझ पड़े मैं बात बताऊं, घास फूस के महलों की।।
जब चंदा चांदनी बरसाए, गोरी के नैन तो हरषे रे,
रात अमावस की हो तो, हम सब के नैना बरसे रे,
मंदिर की झालर बज उठे, बैलों की घंटियाँ नाच फिरे,
और स्याह अंधेरे के मध्य, मेरी झोपड़ की तो लाज गिरे,
इतना होने पर मन मेरा, बात करे नहले दहलों की।
साँझ पड़े मैं बात बताऊं,घास फूस के महलों की।।
गोरी की पायल से हमको, हाय! राह सूझती जाए,
जुगनू की टिम टिम ज्योति से, मेरी झोपड़ भी मुस्काए,
चूल्हे की लाली बुझ जाए, कोहरे से साँसे रूंध जाए,
मन की ज्योति तेज हवा से, लहर लहर जूझ जाए,
इतना होने पर मन मेरा, बात करें चहलों पहलों की।
साँझ पड़े मैं बात बताऊं, घास फूस के महलों की।।