गोल फेरों का यह संसार !
गोल फेरों का यह संसार !
जहां से चलता है फिर वहीं लौटकर आ जाता हर बार !
गोल फेरों का यह संसार !
दीखता है हर कोई बिंदु यहां चोटी पर ही आसीन
दूर जो हैं या हैं जो पास दीखते हैं उत्कर्ष-विहीन।
दृष्टि के कोण यहां पर फैल चले जाते हैं नभ के पार
नजर से ओझल कोई बिंदु खींचता है इन सबके तार।
भ्रमित-सा घूम रहा बेचैन, गोल फेरों का यह संसार !
जहां से चलता है फिर वहीं लौटकर आ जाता हर बार !
नियति ने नियत किए हैं यहां सभी के अलग-अलग
अस्तित्व व्यवस्था को ही मटियामेट लगे हैं करने कुछ व्यक्तित्व।
बना जब आंगन ही भूगोल चले हैं मौतों के व्यापार
आदमी की आदिमता आज और भी अधिक हुई खूंख्खार।
शून्य का परिचायक-सा गोल गोल फेरों का यह संसार !
जहां से चलता है फिर वहीं लौटकर आ जाता हर बार !