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vijay laxmi Bhatt Sharma

Abstract

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vijay laxmi Bhatt Sharma

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गंगा

गंगा

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दिये तेरे बच्चों ने दुःख इतने

दर्द से कराह उठीं तुम

ढ़ोते ढ़ोते बोझ इनका

निर्मल से मलिन हो गई तुम

अब कितना कर्ज बाकी है


धरती के इन कुपात्रों का

जलविहीन हो अब तो तुम

हड्डियों का ही ढाँचा मात्र हो

ठहरी सुस्त चाल तुम्हारी


कहती थक कर चूर हो गईं तुम

लड़खड़ती हो अब भार से

देख तुम्हारी दशा गम्भीर

किंचित भी लाज नहीं जिनको

उनका क्या करें भगवान


टनो बोझ लादते जाते इस पर

तेरी ही दुहाई दे तेरे नाम से

करते जाते इसको मलिन

माता होती नहीं कुमाता सुना था


देखा तुमको आज गंगा माँ

सहती सभी कष्ट गम्भीर

बोझ से जो सूख गई धार इसकी

फिर जीवन कहाँ से लाओगे


सुधर जाओ अब भी मानव

स्वच्छ करो पवित्र माँ गंगा को

नहीं सुना जो समय की पुकार को

माँ विहिन अनाथ कहलाओगे।


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