गंगा , मेरी गंगा !(भक्ति गीत)
गंगा , मेरी गंगा !(भक्ति गीत)
इक नदी नहीं है गंगा,
यह तो संस्कृति का नाम है।
भारत की सभ्यता का,
गंगा ही चारों धाम है।।
हे गंगा तुमको प्रणाम,
हे गंगा तुमको प्रणाम।।
प्यासी है अपनी धरती,
प्यासा है तन बदन।
अब ऐसा हुआ कलंकित,
हम सबका तन बदन।।
ऐसे में गंगा माँ का,
आश्रय ही निदान है।।
हे गंगा तुमको प्रणाम,
हे गंगा तुमको प्रणाम।।
तुम बिन तो अपनी मैया,
है अधूरी जिंदगानी।
तुम हो तो बना हुआ है,
अपनी आँखों का पानी।।
ममता की और निजता की,
मैया तुमसे पहचान है।।
हे गंगा तुमको प्रणाम,
हे गंगा तुमको प्रणाम।।
इक नदी नहीं है गंगा ...।।
