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तृप्ति वर्मा “अंतस”

Abstract

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तृप्ति वर्मा “अंतस”

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ग़म

ग़म

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है माहौल की कमी या अपनी आँख में नमी ?

सभी कुछ दिखता है भीगा सा,मानो ज़िंदग़ी थमी।


सुबह आती नहीं है साथ कभी,

हर सर्द रात में ,सन्नाटे के बर्फ जमी।


सभी तो जी रहे है ज़िंदग़ी को ।

फिर हमारे नयनकोर ही क्यों शबनमी ?


महफ़िलों में तो खींच जाती है मुस्कान लंबी,

लेकिन एकांत में रहती है ये डरी सहमी।


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