ग़म
ग़म
है माहौल की कमी या अपनी आँख में नमी ?
सभी कुछ दिखता है भीगा सा,मानो ज़िंदग़ी थमी।
सुबह आती नहीं है साथ कभी,
हर सर्द रात में ,सन्नाटे के बर्फ जमी।
सभी तो जी रहे है ज़िंदग़ी को ।
फिर हमारे नयनकोर ही क्यों शबनमी ?
महफ़िलों में तो खींच जाती है मुस्कान लंबी,
लेकिन एकांत में रहती है ये डरी सहमी।