STORYMIRROR

सागर जी

Abstract

3  

सागर जी

Abstract

ग़ज़ल

ग़ज़ल

1 min
291

रह तो सही, नज़रों में मेरी,

चाहे दुश्मन की ही तरह तू।


बस तो सही, कहीं न कहीं,

चाहे ज़ख्म की ही तरह तू।


रच तो सही, कोई षड़यंत्र,

चाहे अपने, या गैरों की तरह तू।


कह तो सही, कुछ भी मुझसे,

चाहे तीरों की तरह तू।


कर तो सही, कुछ भी मेरे लिये,

चाहे आस्तीन के सांप की तरह तू।


मार तो सही , ऐ यार मेरे,

चाहे आंखों के वार या तलवार की तरह तू।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract