Prashant Kumar

Romance

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Prashant Kumar

Romance

गज़ल

गज़ल

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मुहब्बत बेज़ुबाँ होती न वीराना मिला होता

अगर हमको भी सजदे में ये मयख़ाना मिला होता।


किसी के वास्ते हम भी सफ़र में सिर झुका लेते

अगर जो रास्ते में कोई बुतख़ाना मिला होता।


कोई इल्ज़ाम क्यों देता तुमारे इन वज़ीरों को

अगर हक़ का सभी को आब और दाना मिला होता।


जुदा होती नहीं हमसे हमारी रात की नीदें

तुम्हारे हाथ का हमको जो सिरहाना मिला होता।


 ख़ुदी गर्दन कटा देते अगर शमशीर साज़ों में

हमें भी हाथ जाना और पहचाना मिला होता।


अलग ही बात होती दुनिया में अपनी मुहब्बत की

अगर तुम सा हमें भी कोई दीवाना मिला होता।


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